झरोखे से झांकती आँखें……….
झरोखे से झांकती आँखें जैसे कुछ कहना चाहती हैं जैसे जीवन के हरपल की मुझे व्याख्या सुनाना चाहती हैं झरोखे से झांकती आँखें हैं जब आशा लिए मुझे घूरती हैं तब शायद मेरे अंतर्मन को वो आँखें झंझोर देती हैं आज गयी मैं…
सच्चाई का धरातल
सच्चाई के धरातल से मैंने आसमान तो देखा है लेकिन ऊंची उड़ान भरती कल्पनाएँ नहीं देखीं अक्सर उम्मीदों को टूटते हुए तो देखा है लेकिन ख्वाबों को कभी मंजिल में बदलते नहीं देखा खिलते फूलों को अक्सर…
बस यूँ ही!
ज़िन्दगी और सफलता के पीछे दौड़ते हुए हम अक्सर अपने को और अपनों को पीछे छोड़ देते हैं। हम क्या? ज़्यादातर लोग ऐसा ही…
चारों तरफ ख़ुशियाँ बिख़री पड़ी हैं
चारों तरफ ख़ुशियाँ बिख़री पड़ी हैं… पता नहीं क्युँ मन फ़िर भी उस तह लगे ग़म को देखता है…… आँखों के सामने चमकती रोशनी…
सहज हँसी से बिखरे मोती
सहज हँसी से बिखरे मोती गोते खाएं हवाओं संग नीलगगन से तांक झांकती हरियाली में छिपती आई किरण जब सर्द हवा से गर्भित मौसम में…
हिंदी केवल व्यवहार नहीं…
मन की बातों में जीवित है। ये जज़बातों में जीवित है। हिंदी केवल व्यवहार नहीं। ये भूले बिसरे गीतों में, ये खोये हुए मन…
एक अन्जान क्षितिज की और………………
ज़िन्दगी के मुस्कुराते पन्नों पर मैंने भी कभी खुशहाली के पल लिखे थे कभी कहा था शब्दों से कि तुम पन्नों की सीध में चलना लेकिन…
जाने क्यूँ इन राहों पर
जाने क्यूँ इन राहों पर ये भाव बदलते रहते हैं जाने क्यूँ इन राहों पर इंसान बदलते रहते हैं देख दिखाते प्यार सभी को…