ज़िन्दगी और सफलता के पीछे दौड़ते हुए हम अक्सर अपने को और अपनों को पीछे छोड़ देते हैं। हम क्या? ज़्यादातर लोग ऐसा ही करते हैं,,,लेकिन अगर हम सबके जैसे हो गए तो हम में हमारे वाली बात कहाँ रह जायेगी? इसीलिए ज़रूरी है कि ‘मैं’ को “हम” में बदल दिया जाए और ‘मेरे’ को “हमारे” में बदल दिया जाए। ,,,,
दूर जाकर तुमसे मुझे
ओर गहरा एहसास हुआ
की मुहब्बत का मुस्तख़बिल
किसी कवायद में नहीं
बस इज़हार कर देने की
काबिलियत से इत्तेफ़ाक़ रखता है।
समझ नहीं आया? कोई बात नहीं?
क्युंकि अक्सर चीज़ें समझ नहीं आती लेकिन नासमझ होने का एहसास ही एक दिन हमें समझदार बना देता है।