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एक लड़की है जो गुम सी है………

एक  लड़की  है जो गुम सी  है
वो   हरदम  सोचती  रहती  है
जाने  किन -किन  सवालों  के
पीछे  वो   भागती  रहती  है
कभी  पूछती  कभी  वो   हंसती
सोते -सोते  कभी  वो  रोती
जाने  क्या  है  मकसद  ऐसा
जिसको  वो   खोजती  रहती  है
कभी  अकेली  कभी  सहेली
के  साथ  वो  रहती  है
कभी  अलबेली  कभी  अटखेली
हवा  से  बातें  करती  है
चाँद  सितारों  को  देखकर
मंद  मंद  वो   मुस्काती  है
कभी  हंसाती  कभी  रुलाती
अकेले  में  वो  कभी  गुनगुनाती
बीर  से  हरदम  सोचती  है  वो
क्या  वो  कुछ  कर  पाएगी
क्या  वो  कुछ  बन  पाएगी
या  यूँ  ही  खोजती  जाएगी
एक  लड़की  है  जो   गुम सी  है
वो  हरदम  सोचती  रहती  है
सपनों की एक गिरी है सिर पर
अपनों का है उस पर ऋणजीवन रुपी माला है उस पर
पर टूटा सा उसको पाती है
आसमान में देखती जब वो
साहस से भर जाती है

फिर नज़रों को नीचे झुका
कुछ कुछ बिखरा हुआ सा पाती है
तभी सोचे सँवार दे उसको
तभी सहम वो जाती है

फिर से चंचल प्यारी बाला
गुमसुम सी हो जाती है
फिर से अपने उन्ही जवाबों
की खोज में वोह जुट जाती है

क्या कभी वो इनको सँवारेगी
और खुद को सँवरा पाएगी
एक लड़की है जो गम सी है
वो हरदम सोचती रहती है

एक  लड़की  है  जो   गुम सी  है
वो  हरदम  सोचती  रहती  है
जाने  कितने ही  सवालों  के
पीछे  वो   भागती  रहती  है
Yamini Shukla

Yamini is an experienced Delhi-based creative writer with a deep fascination for the myriad phenomena of the world. With a keen interest in psychology, literature, and current affairs, she craft stories that explore the intricacies of the human experience. Her writing draws inspiration from diverse perspectives and seeks to capture the subtle, often overlooked, details of everyday life.

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