ज़िन्दगी के मुस्कुराते पन्नों पर
मैंने भी कभी खुशहाली के पल लिखे थे
कभी कहा था शब्दों से कि
तुम पन्नों की सीध में चलना
लेकिन शायद उन हसीं पलों के आगमन का
इन्तेज़ार.. ही नसीब में लिखा था
की पल भी अब ये मेरा साथ छोड़ने लगे हैं
स्वर रुंध रहे है गले को
कहते हैं की बस
अब बहुत हो गया
तुम्हे ये इंतज़ार छोड़ना ही होगा
क्यूंकि अब तुम्हे जाना है
एक अन्जान क्षितिज की और………………
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जाने क्यूँ इन राहों पर