Blog

सच्चाई का धरातल

सच्चाई के धरातल से
मैंने आसमान तो देखा है
लेकिन ऊंची उड़ान भरती
कल्पनाएँ नहीं देखीं

अक्सर उम्मीदों को
टूटते हुए तो देखा है
लेकिन ख्वाबों को कभी
मंजिल में बदलते नहीं देखा

खिलते फूलों को अक्सर
मुरझाते हुए तो देखा है
लेकिन चरमराते पत्तों का दर्द
महसूस करने वाला कोई नहीं देखा

धूप की ताप और सड़क की धुल से
अक्सर लोगों के चेहरे पर परेशानी देखी
लेकिन इसका जीवन में अस्तित्व क्यूँ हैं ?
ये जानने का कोई  इच्छुक नहीं देखा

सच्चाई का धरातल अक्सर
रातों को मुझसे मिलने आता है
लेकिन सुबह की गर्म नीरसता
मुझे इससे दूर ले जाती है

सच्चाई के धरातल से
अक्सर दिन में भी मिला जा सकता है
बस एक बार आसमान की तरफ देख
आँखें खोले रखने की ज़रुरत है

जो आँखें मिला सके दिन में
आसमान को ताकते हुए
खुद से… बस वो ही
सच्चाई के धरातल को समझ सकता है

सच्चाई के धरातल से
मिलने के लिए
पत्तों की चरमराहट को
समझना होगा

खुले आसमान में
कल्पना की
ऊँची उड़ानें
भरनी होंगी

धूप की ताप
सड़क की धुल
खिलने-मुरझाने की प्रक्रिया
को समझना ही होगा

तब जाकर कहीं
सामना हो सकेगा
सच्चाई के धरातल से

जो अक्सर हमारे दिल में उभरकर दिल ही में खत्म हो जाया करता है
Yamini Shukla

Yamini is an experienced Delhi-based creative writer with a deep fascination for the myriad phenomena of the world. With a keen interest in psychology, literature, and current affairs, she craft stories that explore the intricacies of the human experience. Her writing draws inspiration from diverse perspectives and seeks to capture the subtle, often overlooked, details of everyday life.

Post Comment