सच्चाई के धरातल से
मैंने आसमान तो देखा है
लेकिन ऊंची उड़ान भरती
कल्पनाएँ नहीं देखीं
अक्सर उम्मीदों को
टूटते हुए तो देखा है
लेकिन ख्वाबों को कभी
मंजिल में बदलते नहीं देखा
खिलते फूलों को अक्सर
मुरझाते हुए तो देखा है
लेकिन चरमराते पत्तों का दर्द
महसूस करने वाला कोई नहीं देखा
धूप की ताप और सड़क की धुल से
अक्सर लोगों के चेहरे पर परेशानी देखी
लेकिन इसका जीवन में अस्तित्व क्यूँ हैं ?
ये जानने का कोई इच्छुक नहीं देखा
सच्चाई का धरातल अक्सर
रातों को मुझसे मिलने आता है
लेकिन सुबह की गर्म नीरसता
मुझे इससे दूर ले जाती है
सच्चाई के धरातल से
अक्सर दिन में भी मिला जा सकता है
बस एक बार आसमान की तरफ देख
आँखें खोले रखने की ज़रुरत है
जो आँखें मिला सके दिन में
आसमान को ताकते हुए
खुद से… बस वो ही
सच्चाई के धरातल को समझ सकता है
सच्चाई के धरातल से
मिलने के लिए
पत्तों की चरमराहट को
समझना होगा
खुले आसमान में
कल्पना की
ऊँची उड़ानें
भरनी होंगी
धूप की ताप
सड़क की धुल
खिलने-मुरझाने की प्रक्रिया
को समझना ही होगा
तब जाकर कहीं
सामना हो सकेगा
सच्चाई के धरातल से